1.बरसते बादल
1)मीटे गीत कौन गाती है ?
ज. मीटे गीत कोयल गाती है |
2)कोयल किसके लिए पानी माँगती है ?
ज. कोयल धरती का प्यास मिटाने के लिए पानी माँगती है |
3)बदल प्रकृति की शोभा कैसे बढ़ाते है ?
ज.आकाश में पैले बादलों से पानी बरसता है | पानी से प्रकृति को नया जीवन मिलता है और प्रकृति का कण - कण पुलकित होता है | चारों ओर हरियाली पैलती है | तालाब, झील, नदियाँ, सर सब पानी से भर जाते हैं | सारी प्रकृति सुखदायी प्रेरणा और शक्ति भारती है | इस तरह बादलों से प्रकृति की शोभा बढती है I
प्रकृति के बेजोड़ कवी माने जाने वाले सुमित्रानंदन पंत का जन्म सनू 1900 में अल्मोड़ा में हुआ| साहत्य लेखन के लिए इन्हें ' साहित्य अकादमी ' , ' सेवियत रूस ' और ' गणान्पित पुरस्कार ' दिया गया| इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - वीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगांत, ग्राम्या, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद तथा चिदंबरा काव्य के लिए गणनपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया| इनका निधन सनू 1977 में हुआ|
मेघ - घन, बादल, नभ
सावन - वर्ष, श्रावण, बरसात, बारिश
बूँद - बिंदु, कतरा, टोप
तरु - पेड़, वृक्ष, पादप, विटप, द्रुम
बिजली - विघुत , चपला , दामिनी , तड़ित ,बीजुरी
चमक - प्रकाश, ज्योति, रोशनी, आभा
उर - हदय , मन , चित , छाती , अंतःकरण, अंतर
थम - रुक ,ठहर
तम - अंधकार, अंधेरा, कालिमा, कालिख, तिमिर
दिन - दिवस, रोज़, तिथि
सपना - स्वपना, ख्वाब, निद्रा, नीद
जागना - जागृत, जागना, सचेत होना
मन - अंतःकरण, इच्छा, अंतर, चित
घन - मेघ , बादल, जलधर, वारिद
गगन - आकाश, आसमान, अंबर, व्योम, अनंत, शून्य
अंतर - हदय, मन, चित
धरती - धरा, पृथ्वी, भूमि, अवनि, ज़मीन
रज - धूल, बालू , रेत
वारि - जल, पानी, नीर
जन - लोग, मनुष्य, प्रजा
रोम - बल, केश, रोआँ
जीवन - जिंदगी, प्राण, मज्जा
सुख X दुःख
प्रिय X अप्रिय
मनुज X दनुज
कृषि X नाखुशी
प्रस्तुत X अप्रस्तुत
ताम X ज्योति
सुन्दर X असुंदर
लायक X नालायक
आर्द X शुष्क
झम - झम
थम - थम
पीउ - पीउ
फिर - फिर
छम - छम
टर - टर
कण - कण
रिमझिम - रिमझिम
चम - चम
म्यव - म्यव
पेड़ - पादप
सोनबालक बालक जैसी आवांज करने वाला सुनहरा पक्षी बहुव्रीहि समास
इंद्रधनुष इंद्रा का धनुष तत्पुरुष समास
सावन - श्रावण
सुंदरता - सौंदर्याता
सपना - स्वपन
वृक्ष - विटप
सूरज - सूर्य
पेड़ - पादप
गण - गन
वारि - जल
चंद्र - चाँद
1.झम - झम - झम - झम मेघ बरसते हैं सावन के,
छम - छम - छम गिरती बुँदे तरुओं से छन के |
चम - चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम - थम दिन के तम में सपने जागते मन के ||
झम - झम = बहुत ध्वनि करना,
मेघ = बादल
बरसना = वर्षित होना
सावन = श्रावण मास
छम - छम =पानी की बुँदे गिरने से आनेवाली ध्वनि
गिरना = नीचे पड़ना
बूँद =
तरु = पेड
छन के = तप करता हुआ
चम - चम =
बिजली = चमक
चमकना = प्रकाशित होना
उर = दिल
घन = मेघ
थम - थम = रुक - रुक कर
तम = अंधेरा
सपना = स्वप्न
जगना =
भावार्थ : सावन के बदल झम - झम बरसते हैं | पेडों से छानकर बुँदे छम - छम करके धरती पर गिरती हैं | बादलों के ह्रदय में बिजली चमकती है | तब दिन में भी अंधकार छा जाता है| मन में अनेक प्रकार के सपने जगने लगते हैं|
2.दादुर टर - टर करते झिल्ली बजती झन - झन,
' म्यव - म्यव ' रे मोर 'पीउ' 'पीउ' चातक के गण|
उड़ते सोनबालक, आर्द - सुख से कर क्रंदन,
घुमड़ - घुमड़ गिर मेघ गगन में भरते गर्जन|
दादुर = मेढ़क
टर - टर = मेढ़क से की जानेवाली आवाज़
झिल्ली = झींगुर
झन - झन = बाजा बजने की ध्वनि
म्यव - म्यव = मयूर
पीउ - पीउ =
चातक = एक पक्षी का नाम
सोनबालक =
आर्द =
क्रंदन = रोना
घुमड़ - घुमड़ = पूरी तरह से छाया हुआ
भावार्थ : वर्ष के होने पर मेढ़क टरॉते हैं | झींगुर झी - झी करते हैं| मोर म्यव- म्यव करते हैं | चातक पक्षी पिउ - पिउ की आवांज करते हैं| जल पक्षी उड़ते गीली सुख से क्रंदन करते हैं| आसमान में घुमड़ - घुमड़ कर बादल गरजते हैं|
3.रिमझुम - रिमझुम क्या कुछ कहते बुँदे के स्वर,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अंतर|
धाराओं पर धाराएँ झरती धरती पर,
राज के कण - कण में तृण - तृण को पुलकावलि थर|
शब्दार्थ
रिमझुम = फुहार
बुँदे = छींटे
रोम = बाल
सिहरन = कांफ्ना
छूना =
भीतर = अंदर
अंतर = दिल
धारा = प्रवाह
झरना = बहना
धरती = भूमि
राज = धूलि
तृण = घास
पुलकावलि = रोमांचित होना
थर = झूलना
भावार्थ : वर्ष की बुँदे रिमझिम करते बरसाती हैं| उनके स्पर्श से रोम - रोम सिहर उठते हैं| अर्थातू रोमांच होता है| धरती पर वर्ष की धाराएँ बहती हैं, मिटटी के कण - कण से कोमल तृण उत्पर हो प्रसन्नता से झूमते हैं|
4.पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन |
इंद्रधनुष के झूलें में झूलें मिल सब जन,
फिर - फिर आओ जीवन में सावन मनभावन ||
शब्दार्थ
पकड़ = गिरफ़्तार
वारि = पानी
धार = प्रवाह
झूलता = हिलना
घेरना = लिपटकर
झूला =
मनभावन = मनोरथ
भावार्थ : पानी की धारा देखकर कवी का मन झूलने लगता है| अर्थातु मन खुश होता है| सबको आमत्रित करते हुए वे कहते हैं की आप सभी लोग आइए| मुझे घेरकर सावन के गीत गाइए| हमारी कामना है की इंद्रधनुष के झूलें में हम सब झूलें | ऐसा मनभावन सावन हमारे जीवन में बार - बार आये | यही हमारी कामना है|
1)मेघ बिजली और बूंदो का वर्णन यहाँ कैसे किया गया हो?
ज. "बरसते बादल" कविता में सावन के प्राकृतिक सौंदर्य का सुन्दर चित्रण किया हो| सावन के समय आकाश में काले घनघोर बादल छाये रहते हैं| वे झूम - झूम बरसते हैं| काले बादलों के ह्रदय में बिजली चमकती है| वर्ष की बुँदे छम - छम धरती पर गिरती हैं| इनके स्पर्श से मन पुलकित होता है| धरती पर वर्ष की धाराएं बहती हैं| साड़ी प्रकृति मनमोहक दिखती है|
2)प्रकृति की कौन - कौन सी चीजों मन को छू लेती हैं|
ज. वर्ष के समय की प्रकृति शोभा निराली होती है| इस समय के काले - काले बादल, वर्ष की बुँदे, चमकनेवाली बिजली, बहती जल धाराएं, पेड़ - पौधे आदि प्रकृति की चीज़ें मन को छू लेती हैं|
अ) घने बादलों का वर्णन अपने शब्दों में किजिए|
ज. सावन के समय आसमान में घने काले बादल छाये रहते हैं| वे भयानक रूप से घूमते रहते हैं| विविधा आकृतियों में रहकर वे गर्जन करते रहते हैं| रह - रहकर उनके बीच बिजली चमक उठती है| काले घने बादलों को देखकर सब प्राणी खुश हो जाते हैं| दादुर टर्राते हैं| मोर कूकते हैं| चटक शोर मचाते हैं| शीतली पवन के छूटे ही बादल पड़ते हैं| मूसलधार वर्ष होती है| धरती भी पुलकित होती है| प्रकृति का कण - कण प्रसन्न दिखने लगता है| बच्चे हर्षेल्लास से झूमते हैं|
आ) वाक्य उचित क्रम में लिखिए|
1)हैं झूम - झूम बरसते झूम - झूम मेघ के सावन|
ज. झूम - झूम - झूम -झूम मेघ बरसते हैं सावन के|
2)गगन में गर्जन घुमड़ - घुमड़ गिर भरते मेघ|
ज. घुमड़ - घुमड़ गिर मेघ गगन में भरते गर्जन|
3)धरती पर झरती धाराएं पर धाराओं|
ज. धाराओं पर धाराओं झरती धरती पर|
इ) नीचे दिए गए भाव की पंक्तियाँ लिखिए|
1)बादलों के घोर अंधकार के बिच बिजली चमक रही है और मन दिन में ही सपने देखने लगा है|
ज. चम - चम बिजली चमक रही रे उर में गहन के|
2)कवी चाहता है की जीवन में सावन बार - बार आयें और सब मिलकर झूलों में झूलें|
ज. इंद्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन,
फिर - फिर आये जीवन में सावन मनभावन||
ई) पद्यांश पढ़कर प्रशनों के उत्तर दीजिए|
बंद किये है बादल ने अंबर के दरवाजे सारे,
नहीं नजर आता है सूरज न कही चाँद - सितारे|
ऐसा मौसम देखकर, चिड़ियों ने भी पंख पसारे,
हो प्रसन्न धरती के वासी, नभ की और निहारे||
किसके अंबर के दरवाजे बंद कर दिए हैं?
उ. बादल ने अंबर के दरवाजे बंद कर दिए हैं|
इस कविता का विषय क्या है?
उ. इस कविता का विषय प्रकृति है|
अ) वर्ष सभी प्राणियों के लिए जीवन का आधार है| कैसे?
ज. धरती पर स्थित प्राणी मात्र के जीने के लिए पानी अत्यंत आवश्यक है| बिना पानी के कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता| ऐसा अमूल्य पानी वर्ष से ही मिलता है| मानव और अन्य प्राणियों को पेय जल मिलता | खाघान्न उत्पन्न करने, जलचरों को जीने, पेड़ - पौधों के जीवन रहने, पर्यावरण का संतुलन बनाये रहने पानी ही एक मात्र आधार है| इसलिए यह कथन उचित ही है की वर्ष सभी प्राणियों के लिए जीवन का आधार है|
आ) 'बरसते बादल' कविता में प्रकृति का सुन्दर चित्रण है| उसे अपने शब्दों में लिखिए|
ज. 'बरसते बादल' कविता के कवी श्री सुमित्रानंदन पंथ जी है| प्रकृति सौंदर्य के वर्णन में आप बेजोड़ कवी माने जाते हैं| इस कविता में पंतजी ने सावन का सुन्दर वर्णन क्या है|
सावन के बादल झूम - झूम बरसते हैं| पेड़ों से छनकर बुँदे छम - छम करके धरती पर गिरती हैं| बादलों के हृदय में बिजली चमकती है| तब दिन में भी अंधकार छा जाता है| मन में अनेक प्रकार के सपने जागने लगते हैं|
वर्ष के होने पर मेंढक टर्राती हैं| झींगुर झूम - झूम करते हैं| मोर मयाव - मयाव - मयाव करते हैं| चटक पक्षी पिऊ - पिऊ की आवाज करते हैं| जल पक्षी उड़ते गीली सुख से क्रंदन करते हैं| आसमान में घुमड़ - घुमड़ कर बादल गरजतें हैं|
वर्ष की बुँदे रिमझुम करते बरसाती हैं| उनके स्पर्श से रोम - रोम सिहर उठते हैं| आर्थातू रोमांचित होता है| मन प्रपुल्लित होता है| धरती पर वर्ष की धाराएँ बहती हैं, मिट्टि के कण - कण से कोमल तृण उत्पन्न हो प्रसन्नता से झूमते हैं|
इ) प्रकृति सौंदर्य पर एक छोटी - सी कविता लिखिए|
ज. मेरे घर के पास लगा हो,
पेड़ नीम का हरा- भरा|
उसकी डालें झुक - झुक छूती
मेरे रहने का कमरा|
अभी - अभी निकली फुनगी में ,
नयी - नयी प्यारी कोपल
ला, बैंगनी रंग देखकर,
मेरे मन बनता शीतल|
रोज सबेरे चिड़िया आकर
इस में शोर मचाती हैं,
तरह - तरह के गाने गाकर
मेरा दिल बहलाती हैं|
वैसे भी मैं रोज़ बैठता
इसकी छटा के नीचे|
खेला करता आँख मिचौनी
कभी - कभी आँखे मींचे|
नीम न होती अगर सामने
तो घर उजड़ा दिखलाता,
हरियाली के बिना हमारा
दिल न ओम हरा रह पाता|
ई) 'फिर - फिर आये जीवन में सावन मनभावन' ऐसा क्यों कहा गया होगा? स्पस्ट कीजिये|
ज. कवी चाहते हैं की जीवन में सावन बार - बार ए और सब मिलकर झूलों में झूलें| क्योंकि वर्ष ऋतु हमेशा सबकी प्रिय ऋतु रही है| वर्ष के समय प्रकृति की सुंदरता देखने लायक होती है| पेड़ - पौंधे, पशु - पक्षी, मनुष्य और यहाँ तक की धरती भी ख़ुशी से झूम उठती हैं|
वर्ष की धाराओं के कारन मिटटी के कण - कण से कोमल अंकुर फुट कर तरुण बन जाते हैं| उस वर्ष के पानी को पाकर सभी का मन झूलने लगता है| कवी कहते हैं की इंद्रधनुष को झूला बनाकर हम सब मिलकर आकाश में झूलना चाहते हैं| ऐसी सुन्दर - सुन्दर घटनाओं के कारन से कवि फिर - फिर वर्ष ऋतु का आगमन करना चाहते हैं|
अ) तरु, गगन, घन (पर्याय शब्द लिखिए)
ज.* तरु - पेड़, वृक्ष, पादप, विटप, दरख्त
*गगन - आकाश, नभ, अम्बर, असमंम, व्योम
*घन - मेघ, बादल, जल्द, नीरद, अभ्र
आ) मेघ, तरु (वाक्य प्रयोग कीजिए|)
*मेघ - वर्ष होने से पहले आकाश में नीले मेघ छा जाते हैं|
*तरु - तरुओं से प्राणवायु ऑक्सीजन मिलता है और ये पर्यावरण में संतुलन बनाये रखते हैं|
इ) इन्हें समझिये और सुजाना के अनुसार कीजिए|
1.बादल बरसते हैं|(रेखांकित शब्द का पद परिचय दीजिए|)
ज. बादल - संज्ञा, जातिवाचक, अन्य, पुंलिंग, बहुवचन, बरसते हैं क्रिया का कर्ता|
2.पेड़ - पौंदे, पशु - पक्षी (समास पहचानिए)
ज. पेड़ - पौंदे = पेड़ और पौंदे = द्वंद्व समास
पशु - पक्षी = पशु और पक्षी = द्वंद्व समास
1.मन को भानेवाला ज. मनभावन
2.मन को मोहने वाला ज. मनमोहक
1 Doubts's